सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
मंत्र महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् - अयि गिरिनन्दिनि
अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा
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जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥ भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!...
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
पाठ करने more info से पहले गाय के घी का दिया जलाएं और एक कलश में शुद्ध जल भरकर रखें।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥ शंकर हो संकट के नाशन ।
शिव आरती